बाँदा का न्यूनतम तापमान तीन डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया, यह सामान्य से चार डिग्री कम रहा
कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक ने बताया कि कड़ाके की ठंड से फसलों पर पाले की संभावना बढ़ने लगी है, हालांकि गेहूं की फसल के लिए ठंड मुफीद है
बाँदा। (भानु प्रभात ब्यूरो) बर्फीली हवा से ठंड बढ़ती जा रही है।अबकी सर्दी ने नया रिकार्ड कायम किया है। मौसम जानकारों के अनुसार पिछले सात सालों का ठंड ने रिकार्ड तोड़ दिया है। शुक्रवार को चित्रकूटधाम मंडल में बाँदा सबसे ठंडा रहा। खास बात यह है कि पहली बार अधिकतम तापमान 9 डिग्री सेल्सियस पर आ गया है।दिनभर धूप नहीं निकल रही। आगे भी सर्दी का कहर जारी रहने के पूरे आसार हैं। शुक्रवार को दिन की शुरुआत कोहरे से हुई। पहाड़ी क्षेत्रों से करीब 10-12 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से आने वाली ठंडी हवा ने सर्दी व गलन में और इजाफा कर दिया।
पिछले सात सालों का रिकार्ड ध्वस्त करते हुए शुक्रवार (6 जनवरी) को बाँदा सबसे ठंडा बताया गया है। न्यूनतम तापमान तीन डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया है। यह सामान्य से चार डिग्री कम रहाl वहीं दूसरी तरफ अधिकतम तापमान 9 डिग्री सेल्सियस बताया गया है।यह तापमान पहली बार इस स्तर पर पहुंचा है।यह सामान्य से छह डिग्री कम था। इसकी मुख्य वजह उत्तर-पश्चिमी हवाएं बताई गई हैं। दृश्यता 76 फीसदी रही।कोहरा छाया रहने और पूरा दिन धूप न निकलने से लोग ठंड में ठिठुरते रहे।
लोगों ने राहत पाने के लिए हीटर और अलाव का सहारा लिया। इससे दूर हटते ही कंपकंपी छूटने लगती। ठंड का असर ऐसा रहा कि रात आठ बजे ही सड़कें सूनी हो गईं। वहीं शनिवार 7 जनवरी को दोपहर में अच्छी धूप निकली लेकिन बर्फ़ीली हवाएं लोगों को कम्प्कम्पाती रही lकृषि विश्वविद्यालय के मौसम वैज्ञानिक डॉ. दिनेश साह ने बताया कि पहली बार अधिकतम पारा इतना लुढ़का है। अगले दो दिन न्यूनतम तापमान में और कमी आने के आसार हैं। हालांकि अधिकतम तापमान में सुधार की संभावना है।
कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक डॉ. दिनेश साह ने बताया कि कड़ाके की ठंड से फसलों पर पाले के प्रभाव की संभावना बढ़ने लगी है। पाला से सबसे ज्यादा नुकसान अरहर को हो सकता है। इसके अलावा चना, सरसों, अलसी व मटर आदि के पौधों की वृद्धि पर असर पड़ सकता है। हालांकि गेहूं की फसल के लिए ठंड मुफीद है। फसलों को बचाने के लिए किसानों को खेत की गर्मी बनाए रखने के लिए जमीन को फसलों के अवशेषों से ढकना होगा। पाला से बचाव के लिए मेड़ पर धुआं करें। छिड़काव विधि से सिंचाई करें।