घर का माहौल खुशनुमा बनाए, संयुक्त परिवार में रहकर सभी खींचते एक दूसरे की टांग
बच्चे नही करते बुजुर्जों का सम्मान, साथ बैठ समस्यायों का करें हल
डेस्क: (भानु प्रभात ब्यूरो) सुदृढ़ समाज की स्थापना के लिए परिवार की अहम भूमिका होती है, घर के सभी सदस्य एक दूसरे के पूरक होते हैं, एक दूसरे के बिना ये कोई भी काम सुचारू रूप से नहीं कर सकते हैं। घर में छोटे, बड़े बूढ़े, जवान सभी सदस्य एक दूसरे से एकता के सूत्र में बंधे होते हैं। एक जमाना हुआ करता था जब गांव की गलियों में एक चौपाल बैठा करती थी, शाम के समय सारा परिवार इकट्ठा होकर विचार विमर्श किया करते थे, परिवार की औरते सभी कामों से फ्री होकर बाहर चबूतरे की जमीन में बैठकर झुंड बना कर खाना बनाने की विधि से लेकर एक दूसरे के सुख दुःख से लेकर सारी बातें किया करती थी। शाम की चाय के साथ परिवार का एकजुट बैठना अपनी बातें एक दूसरे से कहना यह दर्शाता था कि परिवार में पहले कितनी एकता हुआ करती थी, घर में एक छोटी सी टीवी हुआ करती थी, सभी परिवार साथ मिलकर टीवी में आ रहे कार्यक्रम को देखा करते थे और सर्दियों के समय ऊन सूजा लेकर औरतें बातें करते करते पूरा स्वेटर भी बुन लिया करती थी।
नुक्कड़ के सारे बच्चे मिलकर छुपम छुपाई का खेल खेला करते थे, उस समय नई-नई कॉमिक्स का जमाना था उसे घर लाकर पढ़ा करते थे, तब कहां मोबाइल का जमाना था। सभी एक दूसरे के घर हर त्यौहार में आया जाया करते थे, अपनी अपनी सुख दुख की बातें भी किया करते थे। अपनी आने वाली जनरेशन को सभी माता-पिता एक अच्छी शिक्षा दीक्षा दिया करते थे, परिवार में जिम्मेदार रहना बच्चों को सिखाया करते थे, साथ मिलकर संगी साथी स्कूल जाने का जमाना था, गर्मियों की छुट्टियों में मामा, मौसी, नानी सबके घर जाकर अपनी छुट्टी मनाया करते थे, उस समय सभी लोग एक दूसरे के साथ मिलजुल कर बगीचे, मनोरम स्थल चाहे कहीं पिकनिक मनाने जाना हो साथ में जाया करते थे, परिवार में एकता थी। उस समय लड़ाई झगड़े के कोई भी मुद्दे होते थे साथ मिलकर बैठकर सुलझा लिया करते थे। एक दिन की नाराजगी, तो दूसरे दिन फिर एक दूसरे से माफी मांग कर आगे रिश्ते को निभा लिया करते थे।
लेकिन अब वह जमाना नहीं रहा, समय के साथ-साथ सब चीज बदला, आजकल परिवारों में एकता कम दिखाई देती है और जलन ज्यादा। सब एक दूसरे से प्रतिस्पर्धा करते रहते हैं और मन ही मन एक दूसरे के प्रति बुरे विचार रखा करते हैं, ना किसी के घर आना, ना किसी के घर जाना! बस एक घर में सीमित होकर के रह जाते हैं। रोज के कार्यों में नुक्स निकालना, लड़ाई झगड़े करना यह सारी परेशानियां संयुक्त परिवार में अब देखी जा रही है। यदि सब एक दूसरे से दुश्मनी कर लेते हैं तो यह दुश्मनी लंबी चलती है, ना कोई सलाह मशवरा करता है, ना कोई एक दूसरे को मनाता है, इसी वजह से परिवार टूट रहे हैं, घर टूट रहा है। घर का माहौल खुशनुमा नहीं रह गया सब एक दूसरे की टांग खींचने में लगे रहते हैं, ना बच्चे बड़ों का आदर करते हैं, ना मान सम्मान! और ना ही आजकल के बच्चे बड़े बुजुर्गों का चरण स्पर्श करते हैं। कोई मेहमान घर में आ जाए रहने के लिए तो आजकल सेवा सुश्रुषा करने में भी लोग कतराते हैं, बच्चों के हाथों में मोबाइल देना यह भी परेशानियों का एक सबब बन गया है, बच्चे उद्दंड हो रहे हैं, बच्चों के साथ-साथ बड़े भी अलग-अलग कमरों में सीमित हो गए हैं, कोई किसी से मतलब नहीं रखता है परिवार में भी अनजान से सब दिखाई देते हैं और यदि कुछ कार्य करना होता है आनाकानी करते हैं।
आजकल के बच्चे आज्ञाकारी नहीं रह गए हैं बड़े छोटे सभी मिलकर एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप करते रहते हैं। रोज किसी ना किसी बात को लेकर तू-तू मै-मैं हर घरों में होती रहती है। ऐसे माहौल से बचे! एक दूसरे को समय दीजिए, एक दूसरे को बदनाम करने की कोशिश को बंद कीजिए, यदि इन सब चीजों को नहीं रोका गया तो आने वाले समय में भारतीय संस्कृति खतरे पर पड़ जाएगी। अपने घर के माहौल को स्वर्ग जैसा बनाने की कोशिश कीजिए, कभी कपड़े, तो कभी खाने को लेकर या कभी जमीन जायदाद को लेकर, किसी प्रकार का कोई झगड़ा नहीं कीजिए। बातचीत से सब हल हो जाता है वही करने की कोशिश कीजिए। काश! पहले जैसा जमाना आ जाए वह गली, मोहल्ला, नुक्कड़ जैसा माहौल हर घर में नजर आए, अकेलेपन से बचें और घर में सबके साथ समय व्यतीत करें।याद रखिए घर को खुशनुमा बनाये, घर को बिग बॉस का घर नहीं बनाए!
स्वरचित और मौलिक लेख
पूजा गुप्ता मिर्जापुर उत्तर प्रदेश