शिक्षामित्रों का दर्द: जब जेब रहेगी खाली, तो कैसे मनेगी दिवाली

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शिक्षा मित्रों की तीन पीढियाँ अमानवीय यातना भरा जीवन जीने को हैं मजबूर – सर्वेश यादव

समान योग्यता रखने के बवजूद भी किया जा रहा है

(भानु प्रभात ब्यूरो) मानदेय का भुगतान न होने के कारण शिक्षा मित्रों की दिवाली फ़ीकी रहने के आसार हैं। जबकी इस दिवाली दो माह का मानदेय एक साथ मिलने की सम्भावना थी। शिक्षा मित्रों के वरिष्ठ नेता सर्वेश यादव ने उत्तर प्रदेश सरकार पर सौतेला व्यवहार का आरोप लगाते हुये कहा कि सितम्बर माह के मानदेय की ग्रांट 17 अक्टूबर को देर शाम जारी हुई जो 18 तक जनपद में पहुँचेगी। उसके बाद 21 से 25 अक्टूबर तक बैंक में अवकाश रहेगा ऐसे में दशहरे की तरह दिवाली भी अल्पमानदेय भोगी शिक्षा मित्रों की फ़ीकी रहेगी।

पोस्टर लिए शिक्षा मित्र का पुत्र

बुधवार को शिक्षामित्र नेता सर्वेश यादव ने आक्रोशित होते हुए कहा कि समान काम के बदले में शिक्षक 70 से 80 हजार प्रति माह पाते हैं। साथ सारी सरकारी सुविधाएं भी मिलती हैं। एक तरफ सरकार उन्हें एडवान्स में अक्टूबर माह के वेतन के साथ बढ़ा हुआ 4% डीए व बोनस देने की तैयारी में है तो वहीं दूसरी तरफ सरकार पर शिक्षामित्र जैसे बोझ है। 10 हजार अल्प प्रतिमाह मानदेय पाता है उसे एडवान्स तो छोड़ो सितंबर माह का भी मानदेय अभी तक नही मिला है। काश शिक्षकों की भाँति शिक्षामित्रों को भी सितंबर माह के साथ अक्टूबर माह मानदेय भुगतान भी दीपावली पूर्व किया होता।

बच्चों के साथ शिक्षामित्र

शिक्षक नेता ने कहा कि ऐसी संवेदनहीन निष्ठुर सरकार व व्यवस्था पर शर्म आती है।गत दो दशकों से प्रदेश की बेसिक शिक्षा को संवारने में गुजर गये अब उम्र के तीसरे और अन्तिम पड़ाव पर पहुंच चुके एक लाख तिरपन हजार शिक्षा मित्रों को हर जयन्ती और हर त्योहार पर आशा रहती है कि शायद सरकार का ध्यान उनकी तरफ़ भी हो जाये उनके घर भी खुशियाँ आएं पर ऐसा होता नही। हमेशा अयोग्य कह कर जख्म दिये जाते हैं। साथ ही काम कोल्हू के बैल की तरह लिया जाता है।

उन्होंने दावा किया कि वर्तमान में सभी शिक्षा मित्र स्नातक, परास्नातक, दो वर्ष का दूरस्थ बीटीसी प्रशिक्षण ,बाइस साल के अनुभव के साथ साथ टेट पास भी हैं। जबकी प्राइमरी में आज भी आधे से ज्यादा शिक्षक इन्टर पास तथा बीटीसी, बी एड ही हैं। फ़िर भी योग्यता और मानक पूरे करने के बाद भी शिक्षा मित्रों की तीन पीढियाँ अमानवीय यातना भरा जीवन जीने को मजबूर हैं फ़िर भी कोई सरकार, कोई समाजसेवी संस्था, कोई मानवाधिकार, कोई जनप्रतिनिधि इस मुद्दे पर ध्यान देने की जरूरत नही समझी।

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