स्कूल के समय कितनी देखभाल होती थी, स्कूल खतम होते ही दप्तर (बस्ते) को कोने में फेंक दिया
फुटबॉल ने समझाया कि यह हम सब का दायित्व है कि हम उसके समय में उनके लिए उपयोगी बनें
डेस्क: (भानु प्रभात ब्यूरो) वार्षिक परीक्षा का अंतिम पेपर हो चुका था। सभी बच्चे जोर-जोर से चिल्लाते हुए स्कूल से बाहर भागे। अब पूरे महीने की छुट्टी, धमाल, मस्ती। एक-दूसरे को बधाई देते हुए बच्चे अपने-अपने घर आ गए। विनय घर आया। उसने लगभग अपने जूते और दप्तर (बस्ता) कोने में फेंक दिए।
दप्तर परेशान था। पूरे एक साल से उसकी रक्षा कर रहे विनय ने उसके साथ ऐसा व्यवहार किया, यह देखकर रोने लगा। उसे याद आया कि विनय ने पूरे साल उसके साथ कितना अच्छा व्यवहार किया था। वह हर शाम कल का कार्यक्रम देखकर उन विषयों की कापियों और पुस्तकों को रुचि से भर देता था।
सप्ताह में एक बार साफ स्नान कराता था। वह उसे कंधे पर उठाकर स्कूल ले जाता था। क्लास में जाने के बाद भी उसे बेंच के कप्पे में रखता था। कभी-कभी वह उसे खेलने के लिए मैदान में ले जाता और उसे एक पेड़ के नीचे छाया में रख देता। विनय बीच वेकेशन में उस पर कितना ध्यान देता था।
जब बच्चे गड़बड़ कर रहे हों तो कितनी सावधानी बरतता है कि मैं बेंच से न गिरुं। दप्तर यह याद करके रोने लगा कि वह सभी वर्गों में एक हुशार विनय के दप्तर के रूप में कितना गर्व करता था। अब हमें एक महीने तक ऐसे ही धूल खानी है, तो वह बहुत दुखी हुआ।
कोने में पड़ी फ़ुटबॉल ने उसके रोने की आवाज़ सुनी। फ़ुटबॉल ने कहा, “ओह, तुम इतना क्यों रो रहे हो? तुझे यहां सिर्फ एक महीने के लिए रहना होगा। मैं यहां पूरे एक साल से पड़ा हुआ हूं। सप्ताह में एक बार विनय मुझे मैदान पर ले जाता है और मेरे साथ खेलता है। विनय मेरे साथ अच्छा व्यवहार करता है; लेकिन उसके दोस्त मुझे बहुत जोर से लात मारते हैं।
कभी-कभी वे मुझे मैदान पर कीचड़ में भी रोल कर देते हैं। कभी-कभी मेरी हवा निकल जाने के बाद भी मेरे साथ खेलते हैं। सोचो मैं कितना दुखी होता हूं।” फुटबॉल ने उसकी आंखें पोंछी। उसने कहा, “ओह, विनय कितना तनाव में रहता होगा। वह स्कूल की पढ़ाई, कक्षा की पढ़ाई, विभिन्न गतिविधियों से कितना थक जाता होगा।
यह हम सब का दायित्व है कि हम उसके समय में उनके लिए उपयोगी बनें। उसके जीवन को सुंदर बनाना। स्कूल के समय के दौरान ‘तेरी जिम्मेदारी; और छुट्टियों पर हमारी जिम्मेदारी। टहलने के लिए बाहर जाते समय साइकिल की जिम्मेदारी। और वैसे भी, क्या विनय हमारे बिना खूश रह सकता है क्या?”
इसलिए उसने तुझे फेंक दिया, इसका बुरा मत मानना। दो-तीन दिन में विनय तुझे अवश्य याद करेगा। वह तुझे धोकर साफ करेगा और अलमारी में रख देगा। एक महीने के बाद उसका स्कूल शुरू होगा तो, वह फिर से पहले की तरह ही तेरी देखभाल करेगा। अब अपना रोना बंद कर दो।”
फुटबाल की बात से दफ्तर का हौसला बढ़ा। उसने रोना बंद कर दिया। उसने फ़ुटबॉल से कहा, “अच्छा किया दोस्त तुमने मेरी आँखें खोल दीं। यह सिर्फ एक महीने के लिए है। मैं एक महीने तक चुप रहूंगा।”
एक बार स्कूल शुरू होने के बाद, मैं फिर से विनय के पास जाऊँगा। तब तक तुम, बल्ला, साइकिल, अन्य खिलौने तुम सब विनय के साथ खेलो। तुम अपना कर्तव्य बखूबी से निभाते रहो। मेरे दोस्त बहुत बहुत धन्यवाद।”
इतना कहते ही दप्तर की नाराजगी कहीं की कहीं भाग गयी और दप्तर विनय का स्कूल शुरू होने का इंतजार करने लगा।
लेखक -मच्छिंद्र ऐनापुरे, सांगली
संभाजी चौक,के. एम.हायस्कूल के पिछे, जत जिला सांगली (महाराष्ट्र) 416404