अनूठी पहल: शिक्षिका ने खेल खेल में बच्चों को पढ़ाने का खोजा नुस्खा

Creation Music Sports Tech चित्रकूट न्यूज

प्रधानाचार्य बोले – विद्यालय नहीं आने पर बच्चें रहते हैं मायूस, इनके कारण बढ़ी छात्र संख्या

शिक्षिका हिमांशी सिंह का अनुठा प्रयास देख शिक्षक एवं अभिभावक भी कौतूहल में 

चित्रकूट। (भानु प्रभात ब्यूरो) अगर मन में कुछ अच्छा करने की चाह हो तो राह मिल ही जाती है। जहां एक ओर सरकारी स्कूलों की पढ़ाई और एक्टिविटी को लेकर लगातार साख गिर रही है वहीं कुछ शिक्षक आज भी अपना काम बखूबी कर रहे हैं। आज हम आपको एक महिला शिक्षिका की अनूठी शैक्षणिक शैली से अवगत कराते हैं। जिन्होंने प्राथमिक शिक्षा में नामांकित छात्रों को खेल खेल में शिक्षा देने वाली एक ऐसी पद्धति का मॉडल तैयार किया जो सचमुच ही छात्रों को विद्यालय में उठना, बैठना, बोलना, सुनना के साथ साथ लिखना, पढ़ना आदि सीखने में मददगार साबित हो रहा है। गाँव में प्रायः एक कहावत प्रचलित है कि (सरकारी ) अस्पताल की दवाई से और (सरकारी) स्कूल की पढ़ाई से कोई फायदा नहीं है। लेकिन समाज में फैली ऐसी अवधारणा को ऐसे शिक्षक अपने मेहनत के दम पर अलग अन्दाज में परिभाषा गढ़ रहे हैं।

जनपद चित्रकूट में विकास खण्ड रामनगर के ग्राम पंचायत पियरियामाफी स्थित कम्पोजिट विद्यालय में वर्ष 2020 में सहायक अध्यापक के पद पर नव नियुक्त शिक्षिका हिमांशी सिंह अपने शैक्षणिक तरीकों की वजह से इन दिनों चर्चा में आ गईं है। हिमांशी सिंह वर्ष 2020 में सहायक अध्यापक के पद में नवनियुक्त हुई हैं जो फतेहपुर की रहने वाली हैं। कम्पोजिट विद्यालय पियरियामाफी में आते ही हिमांशी सिंह ने बच्चों का बौद्धिक स्तर देख कुछ अलग करने की मन्शा से एक नीति अपनाई और उसके अनुसार प्राथमिक शिक्षा में नामांकित छात्रों को खेल खेल में शिक्षा देने वाली एक ऐसी पद्धति का मॉडल तैयार किया जो सचमुच ही छात्रों को विद्यालय में उठना बैठना बोलना सुनना के साथ साथ लिखना पढ़ना तक सिखा रही है।

भले ही यह पद्धति रेडिनेन्स कार्यक्रम के तहत सभी विद्यालय में लागू है लेकिन यहाँ पर यह मॉडल नवनियुक्त शिक्षिका के खुद के दिमाग की उपज है। बकौल शिक्षिका हिमांशी सिंह के अनुसार क्योंकि विद्यालय में ही बच्चों का सर्वांगीण विकास सम्भव है लेकिन बच्चे पढ़ने की बजाए खेल को ज्यादा तरजीह देते हैं इसीलिए खेल के साथ ही शिक्षा को हमने जोड़ दिया है। जिस शिक्षा पद्धति के तहत काम किया जा रहा है यह यद्यपि अलग नहीं है लेकिन इसके बारे में बेहतर जानकारी का अभाव है हालांकि यह पद्धति रेडिनेन्स कार्यक्रम के तहत आती है और इसे 22 अप्रैल 2022 से उप्र सरकार ने प्रदेश के सभी स्कूलों में लागू कर इसकी शुरुआत भी करा दिया है। लेकिन यह पद्धति इस विद्यालय में कुछ अलग अंदाज से ही संचालित होती हुई दिख रही है।

क्या है रेडिनेन्स कार्यक्रम-

बात यदि रेडिनेन्स कार्यक्रम की करें तो यह मॉडल 3 से 6 वर्ष के बच्चों के लिए खासकर तैयार किया गया है। ये गतिविधि विद्यालय में आने के लिए छात्रों को तैयार करने की है क्योंकि 6 वर्ष के बाद छात्र प्रारंभिक शिक्षा के लिए विद्यालय में नामांकित होता है।

शैक्षिक गतिविधियों का वीडियो यूट्यूब पर डालने से हुई चर्चित –

जब हिमांशी सिंह से बात की तो उनका कहना है कि मुझे इस पद्धति के बारे में जानकारी नहीं थी एक शिक्षक की सलाह पर 16 जुलाई 2022 को यूट्यूब चैनल पर ( my school my life ma’am himanshi ) नाम से यूट्यूब पर इस विद्यालय के शैक्षिक गतिविधियों का पहला वीडियो अपलोड किया। उसके बाद फिर लगातार वीडियो अपलोड करने लगी। तब मुझे जानकारी मिली लेकिन मन्शा तो स्पस्ट है कि मुझे बच्चों को शिक्षा का प्रसार अपने अंदाज में करना है। जिसका बच्चों पर असरदार प्रभाव पड़े। इसके लिए मुझे बच्चों के बचपन के साथ जुड़कर उन्हें हर गतिविधि से कुछ सीखने सिखाने की ललक के साथ तन्मयता से उनके साथ खेलना भी पड़ता है। अब पता चला है तो इस मॉडल के बारे में उसके जानकारों से और ज्यादा इसकी बारीकियों को समझने के बाद उस पर भी काम करुँगी।

क्या बोले शिक्षक संघ के अध्यक्ष –

बेसिक शिक्षक संघ के जिलाध्यक्ष अखिलेश कुमार पाण्डेय भी मानते हैं कि यदि सरकारी स्कूलों में ऐसे अच्छे शिक्षक होंगे और बुनियादी सुविधाएं अच्छी होंगी तो बच्चों का शैक्षणिक, मानसिक और शारिरिक हर तरह के स्तर का विकास होता हुआ जरूर दिखाई देगा और ऐसे में उनकी दबी हुई एवं छिपी हुई प्रतिभा को पहचानने निखारने का प्रयास किया गया तो न बच्चे स्कूल छोडेंगे और न अभिभावक ही छुड़वाएँगे।

क्या कहतें है प्रधानाचार्य –

कम्पोजिट विद्यालय पियरियामाफी के प्रधानाध्यापक शंकरदयाल शुक्ला ने बताया कि यद्यपि उप्र सरकार के तत्वावधान में बेसिक शिक्षा विभाग द्वारा कक्षा 1 से 3 तक के बच्चों के लिए निपुण भारत के तहत भी कार्ययोजना संचालित है। जो 1 अगस्त 2022 से 22 सप्ताह तक के लिए शैक्षिक गतिविधियां हैं। जो कभी कभी बच्चे स्कूल भी नहीं आ पाते हैं तो कभी अन्य कारणों से भी नहीं आ पाते हैं। ऐसे में हमारे विद्यालय की होनहार शिक्षिका हिमांशी सिंह का यह प्रयोग धर्मी प्रयास अपने आप में अनूठा है कम से कम बच्चों की मौन जिज्ञासा को उन्होंने समझा तो इनके द्वारा किए जा रहे इस खेल खेल से शिक्षा से कितना बड़ा बच्चों को लाभ हो रहा है, यह विद्यालय में बढ़ती संख्या बता रही है। जब यह शिक्षिका किसी दिन अवकाश पर रहती हैं तो विद्यालय में छात्र अपने आप को मायूस महसूस करते हैं कुल मिलाकर स्कूल में बच्चों की नब्ज पकड़ना शिक्षक के लिए आसान नहीं होता है, लेकिन जो भाँप ले वही गुरु होता है और बच्चे भी उनका आदर करते हैं यह शिक्षिका इन मानदण्डों में अक्षरसः खरी उतरी हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *